कविता "आत्मपरिचय"
हरिवंशराय बच्चन

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।

मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता,
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ।

कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना ?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना !
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे ?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना।

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता !

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूटा, तुम कहते छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना।

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।

एक गीत
हरिवंशराय बच्चन

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं―
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे―
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

'आत्मपरिचय' एवं 'एक गीत' नामक दोनों कविताओं के रचयिता 'हरिवंश राय बच्चन' हैं।

हरिवंश राय बच्चन की इन कविताओं में कई महत्वपूर्ण बातें उजागर की गई हैं, जिनमें व्यक्तिगत जीवन का संघर्ष, प्रेम की महत्ता, संसार से द्वंद्व और समय की गतिशीलता प्रमुख हैं।

आत्मपरिचय

इस कविता में कवि ने अपने और संसार के बीच के जटिल रिश्ते को दर्शाया है।
○ जीवन का द्वंद्व ― कवि कहते हैं कि वे जग-जीवन का भार लिए घूम रहे हैं, फिर भी उनके जीवन में प्रेम है। यह दिखाता है कि वे सांसारिक जिम्मेदारियों और व्यक्तिगत भावनाओं के बीच सामंजस्य बनाए हुए हैं। वे दुख और सुख दोनों में समान भाव से जीते हैं।

○ संसार से अलगाव ― कवि इस दुनिया को अपूर्ण मानते हैं और इसकी भौतिकता को ठुकराते हैं। वे कहते हैं कि जहाँ लोग धन-वैभव जोड़ते हैं, वहाँ वे अपने कदमों से उस पृथ्वी को ठुकराते हैं। वे खुद को 'दीवाना' कहते हैं जो संसार की बातों का ध्यान नहीं करता, बल्कि अपने मन की सुनता है।

○ प्रेम का महत्त्व ― कविता का केंद्रीय भाव प्रेम है। कवि अपने हृदय में प्रेम की अग्नि जलाकर उसमें जलते हैं। उनका रोना भी गीतों में बदल जाता है और उनकी शांत वाणी में भी प्रेम की आग छिपी है। वे अपने गीतों से प्रेम और मस्ती का संदेश देना चाहते हैं। दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
यह कविता समय की गतिशीलता और जीवन में प्रेम के महत्व को दर्शाती है।

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

○ समय की रफ्तार ― कवि बताते हैं कि समय बहुत तेज़ी से बीतता है। यह बात पथिक और चिड़िया दोनों के माध्यम से स्पष्ट की गई है। एक पथिक दिन ढलने से पहले अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहता है, और एक चिड़िया भी अपने बच्चों से मिलने के लिए जल्दी-जल्दी उड़ती है।

○ प्रेम का प्रेरक बल ― इस कविता में यह बात उजागर होती है कि किसी भी कार्य को करने के लिए प्रेम ही सबसे बड़ा प्रेरक बल है। पथिक अपने प्रियजन से मिलने और चिड़िया अपने बच्चों को खिलाने की चाह में तेज़ी से आगे बढ़ते हैं।

○ प्रेम के अभाव का दुख ― अंतिम पद में कवि अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं। उनके पास कोई ऐसा नहीं है जो उनके लिए व्याकुल हो, इसीलिए उनका मन बेचैन हो जाता है और उनके कदम शिथिल पड़ जाते हैं। यह दिखाता है कि प्रेम के बिना जीवन का कोई उद्देश्य नहीं रहता और व्यक्ति अकेला महसूस करता है।

दोनों ही कविताएँ बच्चन के व्यक्तिवादी दर्शन को उजागर करती हैं, जिसमें प्रेम और व्यक्ति की भावनाओं को प्राथमिकता दी गई है।

कवि परिचय
हरिवंश राय बच्चन

जन्म- सन् 1907, इलाहाबाद

प्रमुख रचनाएँ- मधुशाला (1935), मधुबाला (1938), मधुकलश (1938), निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलनयामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ (काव्य संग्रह); क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक (आत्मकथा चार खंड); हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ (अनुवाद); प्रवासी की डायरी (डायरी) उनका पूरा वाङ्‌मय 'बच्चन ग्रंथावली' के नाम से दस खंडों में प्रकाशित।

निधन- सन् 2003, मुंबई में

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले 1942-1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, आकाशवाणी के साहित्यिकः कार्यक्रमों से संबद्ध, फिर विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे। दोनों महायुद्धों के बीच मध्यवर्ग के विक्षुब्ध, विकल मन को बच्चन ने वाणी का वरदान दिया। उन्होंने छायावाद की लाक्षणिक वक्रता के बजाय सीधी-सादी जीवंत भाषा और संवेदनसिक्त गेय शैली में अपनी बात कही। व्यक्तिगत जीवन में घटी घटनाओं की सहज अनुभूति की ईमानदार अभिव्यक्ति बच्चन के यहाँ कविता बनकर प्रकट हुई। यह विशेषता हिंदी काव्य संसार में उनकी विलक्षण लोकप्रियता का मूल आंधार है।

मध्ययुगीन फ़ारसी के कवि उमर खय्याम का मस्तानापन हरिवंश राय बच्चन की प्रारंभिक कविताओं विशेषकर मधुशाला में एक अद्भुत अर्थ-विस्तार पाता है-जीवन एक तरह का मधुकलश है, दुनिया मधुशाला है, कल्पना साकी और कविता वह प्याला जिसमें ढालकर जीवन पाठक को पिलाया जाता है। कविता का एक घूँट जीवन का एक घूँट है। पूरी तन्मयता से जीवन का घूँट भरें, कड़वा-खट्टा भी सहज भाव से स्वीकार करें तो अंततः एक सूफ़ियाना-सी बेखयाली मन पर छाएगी, एक के बहाने सारी दुनिया से इश्क हो जाएगा, और तेरा-मेरा के समस्त झगड़े काफूर हो जाएँगे। इसे बच्चन का हालावादी दर्शन कहते हैं।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि उनकी युगबोध-संबंधी कविताएँ जो बाद में लिखी गईं, उनका मूल्यांकन अभी तक कम ही हो पाया है। बच्चन का कवि-रूप सबसे विख्यात है, पर उन्होंने कहानी, नाटक, डायरी आदि के साथ बेहतरीन आत्मकथा भी लिखी है-जो ईमानदार आत्मस्वीकृति और प्रांजल शैली के कारण निरंतर पठनीय बनी हुई है।

यहाँ उनकी कविता आत्मपरिचय तथा गीत संग्रह निशा निमंत्रण का एक गीत दिया जा रहा है। अपने को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। जगजीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण और शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता। क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है- अपना परिचय देते हुए वह लगातार दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म ही उद्घाटित करता चलता है और पूरी कविता का सारांश एक पंक्ति में यह बनता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है- उन्मादों में अवसाद, रोदन में राग, शीतल वाणी में आग, विरुद्धों का विरोधाभासमूलक सामंजस्य साधते साधते ही वह बेखुदी, वह मस्ती, वह दीवानगी व्यक्तित्व में उतर आई है कि दुनिया में हूँ, दुनिया का तलबगार नहीं हूँ / बाजार से गुजरा हूँ खरीदार नहीं हूँ-जैसा कुछ कहने का ठस्सा पैदा हुआ है। यह ठस्सा ही छायावादोत्तर गीतिकाव्य का प्राण है। किसी असंभव आदर्श (यूटोपिया) की तलाश में सारी दुनियादारी ठुकराकर उस भाव से दुनिया से इन्हें कोई वास्ता नहीं है। प्रीति-कलह का यही वितान और विरोधाभास का यह विग्रह इन्हें दूर टिमटिमाते तारे की अबूझ रहस्यात्मकता से लहालोट रखता है। निशा निमंत्रण से उद्धृत गीत में प्रकृति के दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणि-वर्ग (विशेषकर मनुष्य) के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश है। बहुत ही सरल सर्वानुभूत बिंबों के जरिये किसी अगोचर सत्य की रूहानी छुअन महसूस करा देना बच्चन की जो अलग विशेषता है, यह गीत उसका एक बेहतर नमूना है। किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचल तेजी भर सकता है- अन्यथा हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने के अभिशिप्त हो जाते हैं। गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गुजरते जाने के एहसास में लक्ष्य प्राप्ति के लिए कुछ कर गुजरने का जरवा भी लिए हुए है।

पदों की आकर्षक व्याख्या
आत्मपरिचय

(1) मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।

संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित 'आत्मपरिचय' नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध कवि श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि बच्चन जीवन के द्वंद्व को दर्शाते हुए कहते हैं कि वे संसार के उत्तरदायित्वों को निभाते हुए भी प्रेम से भरे हुए हैं।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि मैं इस संसार रूपी जीवन का बोझ अपने कंधों पर लिए घूम रहा हूँ, लेकिन इस बोझ के बावजूद भी मेरा जीवन प्रेम और स्नेह से भरपूर है। कवि के हृदय को किसी अपने ने प्रेमपूर्वक स्पर्श किया था, जिसने मेरे मन की वीणा को झंकृत कर दिया। मेरे जीवन की साँसें उसी प्रेम की मधुर धुन पर बज रही हैं, और मैं उसी प्रेम से सराबोर होकर जीवन जी रहा हूँ।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-
(1) कवि ने जीवन के भार और प्रेम के समन्वय को सुंदरता से दर्शाया है।
(2) 'साँसों के दो तार' में रूपक अलंकार का प्रभावी प्रयोग हुआ है।
(3) भाषा सहज और संगीतमय है, जो पाठक के मन को छू लेती है।
(4) शृंगार रस का मनोहारी चित्रण है।

(2) मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!

संदर्भ- यह पद्यांश भी 'आत्मपरिचय' कविता से लिया गया है, जिसके कवि हरिवंश राय बच्चन हैं।

प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि अपनी स्वछंद और मनमौजी जीवन शैली का परिचय देते हैं।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि मैं प्रेम रूपी मदिरा (स्नेह-सुरा) का सेवन करके मदमस्त रहता हूँ। मुझे इस दुनिया की बातों या आलोचनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। यह संसार केवल उन्हीं की प्रशंसा करता है जो उसकी चापलूसी करते हैं और उसके अनुरूप चलते हैं। परंतु, मैं इन स्वार्थी लोगों की परवाह नहीं करता। मैं तो अपने मन की भावनाओं को ही गीतों में ढालकर गाता रहता हूँ।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-
(1) कवि ने संसार की दिखावे और स्वार्थ भरी प्रवृत्ति पर कटाक्ष किया है।
(2) 'स्नेह-सुरा' में रूपक अलंकार है।
(3) भाषा में प्रवाहमयता और सहजता है, जो कवि के विचारों को स्पष्ट करती है।
(4) अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार की छटा देखने को मिलती है।

(3) मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।

संदर्भ- यह अंश भी 'आत्मपरिचय' कविता का ही भाग है।

प्रसंग- यहाँ कवि जीवन में आने वाले सुख और दुख, दोनों को समान भाव से स्वीकार करने की बात कहते हैं।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि मैं अपने हृदय में प्रेम की अग्नि जलाकर उसमें जलता रहता हूँ, जिसका अर्थ है कि मैं प्रेम की पीड़ा को भी आनंद से सहन करता हूँ। मेरे लिए जीवन में आने वाले सुख और दुख दोनों ही समान हैं; मैं दोनों में ही लीन रहता हूँ। जहाँ लोग इस संसार रूपी सागर को पार करने के लिए नाव जैसे साधन जुटाते हैं, वहीं मैं इस भवसागर की लहरों पर ही मस्ती से बहता रहता हूँ, क्योंकि मुझे जीवन की चुनौतियों से डर नहीं लगता।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-
(1) कवि ने प्रेम की पीड़ा को भी जीवन का अभिन्न अंग माना है।
(2) 'भव-सागर' और 'भव-मौज' में रूपक अलंकार है।
(3) 'सुख-दुख' में द्वंद्व का सुंदर चित्रण है।
(4) भाषा में तत्सम शब्दावली का प्रयोग भावों को गहराता है।

(4) कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना।

संदर्भ- यह पद्यांश हरिवंश राय बच्चन जी की कविता 'आत्मपरिचय' से लिया गया है।

प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि जीवन के शाश्वत सत्य और संसार की अज्ञानता पर विचार करते हैं।

व्याख्या- कवि पूछते हैं कि क्या कोई भी व्यक्ति अपने अनगिनत प्रयासों के बाद भी जीवन के अंतिम सत्य को जान पाया है? कवि कहते हैं कि यह संसार कितना नादान है, जहाँ धन-वैभव जैसी भौतिक चीज़ों का लालच होता है, वहीं पर लोग मूर्खतापूर्ण व्यवहार करते हैं। लोग इन सांसारिक सुखों के पीछे भागते हैं, जबकि मैं इस सांसारिक ज्ञान को भूलकर जीवन के वास्तविक सत्य को जानने का प्रयास कर रहा हूँ।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-
(1) कवि ने संसार की भौतिकता और अज्ञानता पर व्यंग्य किया है।
(2) 'सत्य किसी ने जाना?' में प्रश्न अलंकार का सुंदर प्रयोग है।
(3) 'नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना' एक सूक्ति की तरह है, जो जीवन का गहरा सार बताती है।
(4) भाषा में सहजता और गहनता का अद्भुत मेल है।

(5) मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता !

संदर्भ- यह अंश भी 'आत्मपरिचय' कविता से ही है।

प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि ने अपने और संसार के बीच के द्वन्द्वात्मक संबंध को स्पष्ट किया है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि मेरा स्वभाव संसार से बिल्कुल अलग है, इसलिए हमारा कोई संबंध हो ही नहीं सकता। मैं अपनी कल्पना में रोज-रोज नए संसार बनाता हूँ और फिर उन्हें मिटा देता हूँ। इसका अर्थ है कि मुझे इस दुनिया की भौतिकता से कोई लगाव नहीं है। जहाँ यह दुनिया धन और संपत्ति जोड़ने में लगी रहती है, मैं अपने हर कदम से उस धन-दौलत भरी धरती को ठुकराता हूँ।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-
(1) कवि ने अपनी वैरागी और मस्तमौला प्रवृत्ति को दर्शाया है।
(2) 'मैं और, और जग और' में यमक अलंकार का मनमोहक प्रयोग हुआ है।
(3) 'बना-बना' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
(4) भाषा सरल होने के बावजूद भी गहन विचारों को व्यक्त करती है।

(6) मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।

संदर्भ- यह पद्यांश भी 'आत्मपरिचय' कविता का ही भाग है।
प्रसंग- यहाँ कवि अपनी स्वभावगत विशेषताओं का सुंदर चित्रण करते हैं।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि मेरी पीड़ा भरी आवाज में भी प्रेम का संगीत छिपा है, क्योंकि मेरी वेदना भी प्रेम से उत्पन्न हुई है। मेरी शांत और कोमल वाणी में भी क्रांति और विद्रोह की आग छिपी है। मैं अपने साथ प्रेम की टूटी हुई यादों (खंडहर) को लिए घूमता हूँ, जो इतनी मूल्यवान हैं कि बड़े-बड़े राजाओं के महल भी उन पर न्योछावर किए जा सकते हैं।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-
(1) कवि ने विरोधाभास के माध्यम से अपनी भावनाओं को गहराई से व्यक्त किया है।
(2) 'रोदन में राग', 'शीतल वाणी में आग' और 'खंडहर का भाग' में विरोधाभास अलंकार है।
(3) भाषा में भावनाओं की तीव्रता स्पष्ट रूप से झलकती है।
(4) वियोग शृंगार रस का मार्मिक वर्णन है।

(7) मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।

संदर्भ- यह अंश भी 'आत्मपरिचय' कविता से है। प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि संसार को प्रेम और मस्ती का संदेश देने की बात कहते हैं।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि मैं प्रेम के दीवाने का रूप धारण करके घूमता हूँ। मेरे अंदर प्रेम का गहरा नशा पूरी तरह से भरा हुआ है। मैं जब भी अपने गीत गाता हूँ, तो यह संसार खुशी से झूम उठता है, प्रेम के आगे झुक जाता है और मस्ती में लहराने लगता है। मेरा उद्देश्य इस संसार को प्रेम और खुशी का संदेश देना है।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-
(1) कवि ने प्रेम की शक्ति और उसके प्रभाव को दर्शाया है।
(2) 'झूम, झुके' में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
(3) भाषा सरल और प्रभावी है।
(4) शृंगार रस और शांत रस का सुंदर मिश्रण है।

एक गीत : दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

(1) हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं—
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

संदर्भ- यह पद्यांश 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि हरिवंश राय बच्चन हैं। प्रसंग- यहाँ कवि समय की गति और जीवन में लक्ष्य के महत्व को दर्शाते हैं।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि जीवन रूपी रास्ते का यात्री (पथिक) यह सोचकर तेजी से आगे बढ़ता है कि कहीं रात न हो जाए और उसकी मंजिल भी अब दूर नहीं है। इस विचार से, दिन भर का थका हुआ व्यक्ति भी अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए और अधिक ऊर्जा के साथ कदम बढ़ाता है। कवि के अनुसार, समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहता है और दिन तेजी से ढलता जाता है।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-
(1) 'जल्दी-जल्दी' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है, जो गति को दर्शाता है।
(2) भाषा अत्यंत सरल और भावानुकूल है।
(3) इसमें शांत रस का समावेश है, जो जीवन के यथार्थ को दर्शाता है।
(4) कवि ने समय की अनवरत गति का सुंदर बिंब प्रस्तुत किया है।

(2) बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे—
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित कविता 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' से लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध कवि श्री हरिवंश राय बच्चन हैं।

प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि ने अपने बच्चों से मिलने की चाह में व्याकुल चिड़िया का सुंदर और मार्मिक चित्रण किया है। यह पद यह दर्शाता है कि किसी भी कार्य को करने के लिए प्रेम ही सबसे बड़ा प्रेरक बल होता है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि एक चिड़िया जब आसमान में उड़ती हुई अपने घोंसले की ओर लौटती है, तो उसके मन में एक ही विचार होता है- कि उसके बच्चे उसके इंतजार में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। वे भूखे होंगे और आशा कर रहे होंगे कि उनकी माँ उनके लिए दाना लेकर आएगी। अपने बच्चों की इसी प्रतीक्षा और प्रेम का विचार आते ही चिड़िया के पंखों में एक नई स्फूर्ति और तेज़ी आ जाती है। वह अपनी थकान भूलकर और भी फुर्ती से उड़ने लगती है ताकि वह जल्द से जल्द अपने बच्चों के पास पहुँच सके। इस दौरान दिन अपनी गति से तेजी से ढलता रहता है।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-
(1) कवि ने वात्सल्य प्रेम का हृदयस्पर्शी चित्रण किया है।
(2) 'बच्चे प्रत्याशा' में अनुप्रास अलंकार है।
(3) भाषा सरल, सहज, सरस, तत्सम तद्भव शब्द प्रधान खड़ी बोली है।
(4) 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' की पुनरावृत्ति कविता को संगीतात्मकता प्रदान करती है।

(3) मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

संदर्भ- यह अंश भी 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' कविता से है।

प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि अपने एकाकी जीवन की पीड़ा को व्यक्त करते हैं।

व्याख्या- कवि अपने आप से प्रश्न करते हैं कि इस संसार में ऐसा कौन है, जो मुझसे मिलने के लिए व्याकुल है? और मैं किसके लिए तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ूँ? यह विचार आते ही कवि के कदम कमजोर पड़ने लगते हैं। यह अकेलापन उसके हृदय को दुःख और व्याकुलता से भर देता है। इस भावनात्मक उथल-पुथल के बावजूद, दिन अपनी गति से जल्दी-जल्दी ढलता रहता है।

विशेष (काव्य सौंदर्य)-

(1) कवि की एकाकी और निराश मनोदशा का मार्मिक चित्रण है।
(2) 'मुझसे मिलने' में अनुप्रास और 'कौन विकल?' में प्रश्नालंकार है।
(3) 'शिथिल करता पद को' में मानवीकरण का सुंदर प्रयोग है।
(4) इसमें करुण रस का भाव स्पष्ट होता है।

कविता के साथ

1. कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ- विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?
उत्तर ― ये दोनों कथन ऊपर से भले ही विपरीत लगें, लेकिन इनका गहरा अर्थ है। 'जग-जीवन का भार' का मतलब है कि कवि समाज का एक हिस्सा हैं और उन्हें भी जीवन की जिम्मेदारियों, संघर्षों और चुनौतियों को निभाना पड़ता है। वे सामाजिक प्राणी होने के नाते इन कर्तव्यों से बच नहीं सकते। दूसरी ओर, 'मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ' का अर्थ है कि कवि दुनिया के स्वार्थपूर्ण और दिखावटी व्यवहार की परवाह नहीं करते। वे लोगों की आलोचना या प्रशंसा से प्रभावित हुए बिना अपने मन के अनुसार जीते हैं। इस तरह, कवि जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी दुनिया के भौतिकवादी और खोखलेपन से दूर रहते हैं, यानी वे दुनिया में तो हैं, लेकिन दुनिया के नहीं हैं।

2. जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर ― कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि वे इस दुनिया की वास्तविकता को उजागर करना चाहते हैं। यहाँ 'दाना' का अर्थ है- सुख, धन, ऐश्वर्य या भौतिक सुख-सुविधाओं का लालच। वहीं 'नादान' उन लोगों को कहा गया है जो इन लालचों के पीछे भागते हैं। कवि का कहना है कि जहाँ भौतिक सुखों की प्राप्ति का साधन होता है, वहीं लोग मूर्खतापूर्ण व्यवहार करते हैं। वे अपने जीवन का अंतिम सत्य भूलकर इन सांसारिक चीजों को इकट्ठा करने में लगे रहते हैं, जो कि उनकी नादानी है।

3. मैं और, और जग और कहाँ का नाता पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।
उत्तर ― इस पंक्ति में 'और' शब्द का प्रयोग तीन अलग-अलग अर्थों में हुआ है, जिससे यहाँ यमक अलंकार की छटा दिखती है।
1. पहले 'और' का अर्थ है - कवि का स्वयं का व्यक्तित्व और स्वभाव।
2. दूसरे 'और' का अर्थ है - संसार का स्वभाव और प्रवृत्ति।
3. तीसरे 'और' का अर्थ है - इन दोनों में कोई समानता नहीं है, यानी 'कोई और ही'।
इस तरह, यह पंक्ति बताती है कि कवि का स्वभाव संसार के स्वभाव से बिलकुल अलग है, और इसलिए उनका संसार से कोई गहरा रिश्ता नहीं है।

4. शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर ― 'शीतल वाणी में आग' में विरोधाभास अलंकार है। इसका मतलब है कि कवि की भाषा भले ही शांत, सरल और मधुर है, लेकिन उसके अंदर भावनाओं की तीव्रता और क्रांति का भाव छिपा है। कवि अपनी मधुर और कोमल वाणी के माध्यम से भी लोगों में जोश भरना चाहते हैं और समाज की रूढ़ियों के खिलाफ विद्रोह का भाव प्रकट करते हैं।

5. बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?
उत्तर ― बच्चे इस आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे कि उनके माता-पिता उनके लिए भोजन लेकर लौटेंगे। वे भूखे होंगे और उन्हें अपने माता-पिता के लौटने की बेसब्री से प्रतीक्षा होगी। यह दृश्य जीवन की उस सच्चाई को दर्शाता है जहाँ प्रेम और सुरक्षा की भावना किसी भी कार्य के लिए प्रेरणा बनती है।

6. दिन जल्दी-जल्दी बलता है की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर ― 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' की आवृत्ति से कविता में कई विशेषताएँ उजागर होती हैं―
1. समय की गतिशीलता— यह पंक्ति समय की निरंतर और तेज गति को दर्शाती है, जो किसी के लिए नहीं रुकता।
2. लय और संगीत— इस पंक्ति की पुनरावृत्ति कविता को एक गेयता (singing quality) और संगीतात्मकता प्रदान करती है।
3. भाव की प्रबलता— इस वाक्यांश को बार-बार दोहराने से कवि की व्याकुलता और बेचैनी का भाव और अधिक गहरा हो जाता है। यह समय के बीतने के साथ ही लक्ष्य तक पहुँचने की मानवीय प्रेरणा को भी दर्शाता है।

कविता के आसपास

प्रश्न ― संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?
उत्तर ― संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल पैदा करना संभव है, और यह हमारी सोच और दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। इसके कुछ तरीके यहाँ दिए गए हैं—

1. स्वीकृति और सकारात्मक दृष्टिकोण— कष्टों को जीवन का एक हिस्सा मानकर स्वीकार करना पहला कदम है। जब हम यह समझ लेते हैं कि दुख और सुख दोनों आते-जाते रहते हैं, तो हम मुश्किलों से लड़कर निराश होने के बजाय उनसे सीख लेते हैं। इसके बाद, छोटी-छोटी चीजों में खुशी ढूँढना शुरू करें, जैसे प्रकृति की सुंदरता में, किसी प्रियजन की मुस्कान में, या अपनी किसी उपलब्धि में।

2. खुद को व्यस्त रखें— जब हम किसी काम में पूरी तरह डूब जाते हैं, तो हमारा ध्यान कष्टों से हटकर उस काम पर चला जाता है। किसी हॉबी को अपनाना, जैसे पेंटिंग, संगीत, या गार्डनिंग, हमें मानसिक शांति और आनंद देता है। रचनात्मकता हमें अपने अंदर की भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देती है, जिससे मन हल्का होता है।

3. सामाजिक और भावनात्मक जुड़ाव— परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना हमें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है। अपनी भावनाओं को किसी ऐसे व्यक्ति के साथ साझा करना जो हमें समझता है, बहुत मददगार होता है। दूसरों की मदद करना भी एक अद्भुत तरीका है। जब हम किसी और के चेहरे पर मुस्कान लाते हैं, तो हमें भी गहरी खुशी का अनुभव होता है।
क्या आप खुशी और मस्ती का माहौल पैदा करने के बारे में कोई और तरीका जानना चाहते हैं?

आपसदारी

☆ जयशंकर प्रसाद की आत्मकथ्य कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या पाठ में दी गई आत्मपरिचय कविता से इस कविता का आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करें।

आत्मकथ्य

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
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उसकी स्मृति पाथेय बनी है धके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
जयशंकर प्रसाद

उत्तर ― आपने जयशंकर प्रसाद की 'आत्मकथ्य' कविता की कुछ पंक्तियाँ दी हैं और पूछा है कि क्या इसका हरिवंश राय बच्चन की 'आत्मपरिचय' कविता से कोई संबंध है। हाँ, इन दोनों कविताओं में कुछ महत्वपूर्ण संबंध और कुछ महत्वपूर्ण अंतर भी हैं।

दोनों कविताओं में संबंध (समानताएँ)
1. आत्म-कहन का प्रयास— दोनों ही कवि अपनी पहचान और अपने जीवन के बारे में बात कर रहे हैं। 'आत्मपरिचय' में बच्चन खुद का परिचय देते हैं और 'आत्मकथ्य' में प्रसाद अपनी कहानी कहने से मना करते हैं। दोनों का विषय 'आत्म' (स्वयं) से जुड़ा है।

2. निजी जीवन की पीड़ा— दोनों कविताओं में निजी जीवन के दुखों और पीड़ा का जिक्र है। बच्चन कहते हैं कि वे 'रोदन में राग' लिए फिरते हैं और उनके 'यौवन का उन्माद' 'अवसाद' लिए हुए है। इसी तरह, प्रसाद अपनी 'मौन व्यथा' की बात करते हैं और कहते हैं कि उनके जीवन की 'भोली आत्मकथा' सुनकर कोई लाभ नहीं होगा।

दोनों कविताओं में अंतर 1. दृष्टिकोण का अंतर— यह सबसे बड़ा अंतर है। बच्चन अपनी कविता में जीवन के संघर्षों के बावजूद खुशी और मस्ती का संदेश देते हैं। वे कहते हैं, "मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।" वे अपने दुखों को भी सकारात्मकता के साथ स्वीकार करते हैं। इसके विपरीत, प्रसाद अपनी कविता में मौन और निराशा का भाव दिखाते हैं। वे अपनी पीड़ा को निजी रखना चाहते हैं और मानते हैं कि उनकी कहानी सुनाने का यह सही समय नहीं है।

2. व्यक्तित्व का प्रकटीकरण— बच्चन का व्यक्तित्व बहिर्मुखी (extrovert) है, जो खुलकर अपने विचार और भावनाएँ व्यक्त करते हैं। वे खुद को 'दीवाना' कहते हैं। वहीं, प्रसाद का व्यक्तित्व अंतर्मुखी (introvert) है। वे अपनी पीड़ा को लोगों के सामने उजागर नहीं करना चाहते और अपनी आत्मकथा को 'भोली' और 'छोटी' मानते हैं।
संक्षेप में, दोनों कविताओं में 'आत्म-कथन' का विषय समान है, लेकिन कवियों का दृष्टिकोण बिलकुल अलग है। जहाँ बच्चन अपने दुखों के बावजूद मस्ती और प्रेम का संदेश देते हैं, वहीं प्रसाद अपनी पीड़ा को निजी और मौन रखना पसंद करते हैं।

प्रतियोगिता परीक्षाओं हेतु महत्वपूर्ण वैकल्पिक प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. हरिवंश राय बच्चन का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
(क) 1907, इलाहाबाद
(ख) 1910, वाराणसी
(ग) 1912, लखनऊ
(घ) 1905, बिहार

2. 'मधुशाला' किसकी प्रसिद्ध रचना है?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) हरिवंश राय बच्चन
(ग) सुमित्रानंदन पंत
(घ) निराला

3. 'आत्मपरिचय' कविता किस काव्य संग्रह से ली गई है?
(क) मधुकलश
(ख) सतरंगिणी
(ग) निशा निमंत्रण
(घ) एकांत संगीत

4. कवि 'जग-जीवन का भार' क्यों लिए फिरते हैं?
(क) सांसारिक जिम्मेदारियों के कारण
(ख) पारिवारिक समस्याओं के कारण
(ग) भौतिक सुखों के कारण
(घ) मानसिक तनाव के कारण

5. कवि को 'कवि' कहलाना पसंद क्यों नहीं है?
(क) वे स्वयं को एक दीवाना मानते हैं
(ख) वे छंदों की रचना नहीं करते
(ग) वे प्रसिद्ध नहीं होना चाहते
(घ) उन्हें यह उपाधि पसंद नहीं है

6. 'स्नेह-सुरा' में कौन-सा अलंकार है?
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा
(ग) रूपक
(घ) उत्प्रेक्षा

7. कवि सुख-दुःख दोनों में मग्न क्यों रहते हैं?
(क) वे दोनों को जीवन का हिस्सा मानते हैं
(ख) वे लापरवाह हैं
(ग) उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता
(घ) वे साधु हैं

8. कवि किस ज्ञान को भुलाना चाहते हैं?
(क) भौतिक ज्ञान को
(ख) सांसारिक ज्ञान को
(ग) सत्य ज्ञान को
(घ) आध्यात्मिक ज्ञान को

9. 'शीतल वाणी में आग' से क्या अभिप्राय है?
(क) शांत भाषा में क्रांति
(ख) मधुर भाषा में गुस्सा
(ग) ठंडी वाणी में गर्मी
(घ) धीमी आवाज में उत्तेजना

10. कवि दुनिया से किस प्रकार का संबंध रखते हैं?
(क) प्रीति-कलह का
(ख) मित्रता का
(ग) शत्रुता का
(घ) कोई संबंध नहीं

11. 'मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ, उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ' में कौन-सा अलंकार है?
(क) उपमा
(ख) विरोधाभास
(ग) अनुप्रास
(घ) मानवीकरण

12. 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' कविता में किस भाव का चित्रण है?
(क) प्रेम की व्याकुलता
(ख) समय की गतिशीलता
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) केवल (क)

13. दिन ढलने से पहले पथिक तेज़ी से क्यों चलता है?
(क) उसे रात होने का डर है
(ख) उसकी मंजिल दूर नहीं है
(ग) वह थका हुआ है
(घ) उसे घर पहुँचना है

14. चिड़िया के परों में चंचलता क्यों भर जाती है?
(क) बच्चों की याद आने पर
(ख) दिन ढलने पर
(ग) भोजन मिलने पर
(घ) थकान के कारण

15. 'बच्चे प्रत्याशा में होंगे' में कौन-सा भाव है?
(क) उम्मीद और प्रतीक्षा
(ख) डर और चिंता
(ग) भूख और प्यास
(घ) प्रेम और वात्सल्य

16. कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं?
(क) उन्हें कोई प्रेम करने वाला नहीं है
(ख) वे थक गए हैं
(ग) उन्हें मंजिल नहीं मिली
(घ) वे दुखी हैं

17. 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' की आवृत्ति से क्या पता चलता है?
(क) समय की गति
(ख) कविता की लय
(ग) कवि की व्याकुलता
(घ) उपरोक्त सभी

18. हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा कितने खंडों में है?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच

19. 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ' किस विधा की रचना है?
(क) कहानी
(ख) आत्मकथा
(ग) नाटक
(घ) उपन्यास

20. 'निशा निमंत्रण' किस प्रकार का काव्य संग्रह है?
(क) गीत संग्रह
(ख) महाकाव्य
(ग) खंडकाव्य
(घ) कविता संग्रह

21. कवि अपनी 'शीतल वाणी' में क्या लिए फिरते हैं?
(क) आग
(ख) प्रेम
(ग) मस्ती
(घ) दुख

22. 'रोदन में राग लिए फिरता हूँ' में कौन-सा अलंकार है?
(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) विरोधाभास
(घ) श्लेष

23. कवि दुनिया में क्या संदेश लिए फिरते हैं?
(क) प्रेम और मस्ती का
(ख) शांति और सद्भाव का
(ग) संघर्ष का
(घ) ज्ञान का

24. 'मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता' से क्या अभिप्राय है?
(क) कवि रोज काल्पनिक संसार बनाते हैं
(ख) कवि दुनिया को मिटाते हैं
(ग) कवि रोज नई रचनाएँ करते हैं
(घ) कवि रोज घूमते हैं

25. 'भव-सागर' में कौन-सा अलंकार है?
(क) रूपक
(ख) उपमा
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) श्लेष

26. कवि अपनी जीवन-यात्रा में क्या लिए फिरते हैं?
(क) साँसों के दो तार
(ख) जीवन का भार
(ग) प्रेम
(घ) उपरोक्त सभी

27. 'बच्चन ग्रंथावली' में कवि का पूरा साहित्य कितने खंडों में प्रकाशित है?
(क) आठ
(ख) नौ
(ग) दस
(घ) बारह

28. कवि अपने जीवन में सुख-दुख को कैसे देखते हैं?
(क) समभाव से
(ख) केवल सुख को
(ग) केवल दुख को
(घ) इनमें से कोई नहीं

29. 'आत्मकथ्य' कविता के कवि कौन हैं?
(क) हरिवंश राय बच्चन
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) निराला
(घ) पंत

30. 'नीड़ों से झाँक रहे होंगे' में कौन-सा भाव है?
(क) उम्मीद
(ख) उत्सुकता
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) भय