प्रेमचंद का संक्षिप्त परिचय

प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में बनारस के लमही गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपत राय था। प्रेमचंद का बचपन अभावों में बीता और शिक्षा बी.ए. तक ही हो पाई। उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी की परंतु असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और लेखन कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए। सन् 1936 में इस महान कथाकार का देहांत हो गया।

प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं।

सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान उनके प्रमुख उपन्यास हैं। उन्होंने हंस, जागरण, माधुरी आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया। कथा साहित्य के अतिरिक्त प्रेमचंद ने निबंध एवं अन्य प्रकार का गद्य लेखन भी प्रचुर मात्रा में किया। प्रेमचंद साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम मानते थे। उन्होंने जिस गाँव और शहर के परिवेश को देखा और जिया उसकी अभिव्यक्ति उनके कथा साहित्य में मिलती है। किसानों और मजदूरों की दयनीय स्थिति, दलितों का शोषण, समाज में स्त्री की दुर्दशा और स्वाधीनता आंदोलन आदि उनकी रचनाओं के मूल विषय हैं।

प्रेमचंद के कथा साहित्य का संसार बहुत व्यापक है। उसमें मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों को भी अद्भुत आत्मीयता मिली है। बड़ी से बड़ी बात को सरल भाषा में सीधे और संक्षेप में कहना प्रेमचंद के लेखन की प्रमुख विशेषता है। उनकी भाषा सरल, सजीव एवं मुहावरेदार है तथा उन्होंने लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग कुशलतापूर्वक किया है।

प्रेमचंद : प्रतियोगिता परीक्षा प्रश्नोत्तरी

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प्रश्न 1. प्रेमचंद का मूल नाम क्या था?
(अ) धनपत राय
(ब) गुलाम रसूल
(स) प्रेम कुमार
(द) नवराज
उत्तर — (अ) धनपत राय

प्रश्न 2. प्रेमचंद का जन्म किस वर्ष हुआ था?
(अ) सन् 1888
(ब) सन् 1890
(स) सन् 1880
(द) सन् 1936
उत्तर — (स) सन् 1880

प्रश्न 3. असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए प्रेमचंद ने क्या किया?
(अ) राजनीति में शामिल हो गए
(ब) सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया
(स) शिक्षण कार्य शुरू किया
(द) सरकार के साथ काम करना जारी रखा
उत्तर — (ब) सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया

प्रश्न 4. उनकी कहानियों का संग्रह किस नाम से संकलित है?
(अ) मानसरोवर
(ब) सेवासदन
(स) गोदान
(द) कर्मभूमि
उत्तर — (अ) मानसरोवर

प्रश्न 5. इनमें से कौन सा प्रेमचंद का उपन्यास नहीं है?
(अ) कायाकल्प
(ब) निर्मला
(स) गोदान
(द) चित्रलेखा
उत्तर — (द) चित्रलेखा

प्रश्न 6. प्रेमचंद ने किन पत्रिकाओं का संपादन किया?
(अ) हंस, जागरण, माधुरी
(ब) सरस्वती, प्रभा, चाँद
(स) चाँद, सुधा, हंस
(द) माधुरी, कर्मयोगी, जागरण
उत्तर — (अ) हंस, जागरण, माधुरी

प्रश्न 7. प्रेमचंद के लेखन का मूल विषय क्या नहीं था?
(अ) किसानों और मजदूरों की दयनीय स्थिति
(ब) समाज में स्त्री की दुर्दशा
(स) अंतरिक्ष विज्ञान
(द) स्वाधीनता आंदोलन
उत्तर — (स) अंतरिक्ष विज्ञान

प्रश्न 8. प्रेमचंद के कथा साहित्य के बारे में कौन सी बात सही है?
(अ) यह सिर्फ मनुष्यों तक ही सीमित है।
(ब) इसमें मनुष्य और पशु-पक्षियों दोनों को जगह मिली है।
(स) इसमें केवल राजाओं और रानियों की कहानियाँ हैं।
(द) यह केवल सामाजिक मुद्दों पर आधारित है।
उत्तर — (ब) इसमें मनुष्य और पशु-पक्षियों दोनों को जगह मिली है।

प्रश्न 9. प्रेमचंद ने साहित्य को किस रूप में देखा?
(अ) मनोरंजन का साधन
(ब) सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम
(स) व्यक्तिगत विचारों की अभिव्यक्ति
(द) धन कमाने का जरिया
उत्तर — (ब) सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम

प्रश्न 10. प्रेमचंद के लेखन की प्रमुख विशेषता क्या थी?
(अ) केवल जटिल और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग
(ब) बड़ी बात को सरल और संक्षेप में कहना
(स) लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग न करना
(द) अलंकारिक भाषा का अत्यधिक उपयोग
उत्तर — (ब) बड़ी बात को सरल और संक्षेप में कहना

दो बैलों की कथा : किस बारे में, क्या उद्देश्य

दो बैलों की कथा के माध्यम से प्रेमचंद ने कृषक समाज और पशुओं के भावात्मक संबंध का वर्णन किया है। इस कहानी में उन्होंने यह भी बताया है कि स्वतंत्रता सहज में नहीं मिलती, उसके लिए बार-बार संघर्ष करना पड़ता है। इस प्रकार परोक्ष रूप से यह कहानी आजादी के आंदोलन की भावना से जुड़ी है। इसके साथ ही इस कहानी में प्रेमचंद ने पंचतंत्र और हितोपदेश की कथा-परंपरा का उपयोग और विकास किया है।

दो बैलों की कथा- संपूर्ण पाठ

जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ़ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्याई हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है; किंतु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता होः पर हमन तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर एक विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दुख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं; पर आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा। कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में व्य दुर्दशा हो रही है? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं। अगर वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते तो शायद सभ्य कहलाने लगते। जापान की मिसाल सामने है। एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।

path 1 do bailon ki katha hira moti Premchand

लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है 'बैल'। जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में 'बछिया के ताऊ' का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफ़ों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे; मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है। और भी कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट कर देता है; अतएव उसका स्थान गधे से नीचा है।

झूरी काछी के दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती। दोनों पछाईं जाति के थे-देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊँचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक, दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे-विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होतें ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हलकी-सी रहती है, जिस पर ज़्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला हिलाकर चलते, उस वक्त हर एक की यही चेष्टा होती थी कि ज़्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गरदन पर रहे। दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते, तो एक-दूसरे को चाट-चूटकर अपनी थकान मिटा लिया करते। नाँद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नाँद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता, तो दूसरा भी हटा लेता था।

संयोग की बात, झूरी ने एक बार गोई को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम. वे क्यों भेजे जा रहे हैं। समझे, मालिक ने हमें बेच दिया। अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोई ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता, तो दोनों पीछे को जोर लगाते। मारता तो दोनों सींग नीचे करके हुँकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती, तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था तो और काम ले लेते। हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलावा. वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथ क्यों बेच दिया?

संध्या समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे। दिन-भर के भूखे थे, लेकिन जब नाँद में लगाए गए, तो एक ने भी उसमें मुँह न डाला। दिल भारी हो रहा था। जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया था। यह नया घर, नया गाँव, नए आदमी, उन्हें बेगानों से लगते थे।

दोनों ने अपनी मूक-भाषा में सलाह की. एक-दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गए। जब गाँव में सोता पड़ गया, तो दोनों ने जोर मारकर पगहे तुड़ा डाले और घर की तरफ़ चले। पगहे बहुत मज़बूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा; पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गईं।

झूरी प्रातःकाल सोकर उठा, तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा है। घुटने तक पाँव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है।

झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गद्गद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुंबन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था।

घर और गाँव के लड़के जमा हो गए और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गाँव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्वपूर्ण थी। बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों को अभिनंदन-पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी। एक बालक ने कहा-ऐसे बैल किसी के पास न होंगे।

दूसरे ने समर्थन किया-इतनी दूर से दोनों अकेले चले आए।

तीसरा बोला-बैल नहीं हैं वे उस जनम के आदमी हैं।

इसका प्रतिवाद करने का किसी को साहस न हुआ।

झूरी की स्त्री ने बैलों को द्वार पर देखा, तो जल उठी। बोली-कैसे नमकहराम बैल हैं कि एक दिन वहाँ काम न किया; भाग खड़े हुए।

झूरी अपने बैलों पर यह आक्षेप न सुन सका-नमकहराम क्यों हैं? चारा-दाना न दिया होगा, तो क्या करते?

स्त्री ने रोब के साथ कहा-बस, तुम्हीं तो बैलों को खिलाना जानते हो, और तो सभी पानी पिला-पिलाकर रखते हैं।

FIF झूरी ने चिढ़ाया चारा मिलता तो क्यों भागते ?

स्त्री चिढ़ी-भागे इसलिए कि वे लोग तुम-जैसे बुद्धओं की तरह वैलों को सहलाते नहीं। खिलाते हैं, तो रगड़कर जोतते भी हैं। ये दोनों ठहरे कामचोर, भाग निकले। अब देखूँ, कहाँ से खली और चोकर मिलता है! सूखे भूसे के सिवा कुछ क्त दूँगी, खाएँ चाहें मरें।

वही हुआ। मजूर को कड़ी ताकीद कर दी गई कि बैलों को खाली सूखा भूसा दिया जाए।

बैलों ने नाँद में मुँह डाला, तो फीका फीका। न कोई चिकनाहट, न कोई रस! क्या खाएँ? आशा-भरी आँखों से द्वार की ओर ताकने लगे।

झूरी ने मजूर से कहा थोड़ी सी खली. क्यों नहीं डाल देता बे?

'मालकिन मुझे मार ही डालेगी।'

'चुराकर डाल आ।'

'न दादा, पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी कहोगे।'

दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और बैलों को ले चला। अबकी उसने दोनों को गाड़ी में जोता।

दो-चार बार मोती ने गाड़ी को सड़क की खाई में गिराना चाहा; पर हीरा ने संभाल लिया। वह ज्यादा सहनशील था।

संध्या-समय घर पहुँचकर उसने दोनों को मोटी रस्सियों से बाँधा और कल की शरारत का मजा चखाया। फिर वही सूखा भूसा डाल दिया। अपने दोनों बैलों को खली, चूनी सब कुछ दी।

दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था। झूरी इन्हें फूल की छड़ी से भी न छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहाँ मार पड़ी। आहत-सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा !

नाँद की तरफ आँखें तक न उठाई।

दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता, पर इन दोनों ने जैसे पाँव न उठाने की कसम खा ली थी। वह मारते-मारते थक गया; पर दोनों ने पाँव न उठाया। एक बार जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर खूब डंडे जमाए, तो मोती का गुस्सा काबू के बाहर हो गया। हल लेकर भागा। हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-टाट कर बराबर हो गया। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं, तो दोनों पकड़ाई में न आते।

हीरा ने मूक-भाषा में कहा-भागना व्यर्थ है।

मोती ने उत्तर दिया-तुम्हारी तो इसने जान ही ले ली थी।

'अबकी बड़ी मार पड़ेगी।'

'पड़ने दो, बैल का जन्म लिया है, तो मार से कहाँ तक बचेंगे?'

'गया दो आदमियों के साथ दौड़ा आ रहा है। दोनों के हाथों में लाठियाँ हैं।' माती बोला-कहो तो दिखा दूँ कुछ मज्जा मैं भी। लाठी लेकर आ रहा है।

हीरा ने समझाया नहीं भाई। खड़े हो जाओ।

'मुझे मारेगा, तो मैं भी एक-दो को गिरा दूँगा!'

'नहीं। हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।'

मोती दिल में ऐंठकर रह गया। गया आ पहुँचा और दोनों को पकड़ कर ले चला। कुशल हुई कि उसने इस वक्त मारपीट न की, नहीं तो मोती भी पलट पड़ता। उसके तेवर देखकर गया और उसके सहायक समझ गए कि इस वक्त टाल जाना ही मसलहत है।

आज दोनों के सामने फिर वही सूखा भूसा लाया गया। दोनों चुपचाप खड़े रहे। घर के लोग भोजन करने लगे। उस वक्त छोटी-सी लड़की दो रोटियाँ लिए निकली, और दोनों के मुँह में देकर चली गई। उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहाँ भी किसी सज्जन का वास है। लड़की भैरो की थी। उसकी माँ मर चुकी थी। सौतेली माँ उसे मारती रहती थी, इसलिए इन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी। दोनों दिन-भर जोते जाते, डंडे खाते, अड़ते। शाम को थान पर बाँध दिए जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती।

प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आँखों में, रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था।

एक दिन मोती ने मूक-भाषा में कहा-अब तो नहीं सहा जाता, हीरा !

'क्या करना चाहते हो?'

'एकाध को सींगों पर उठाकर फेंक दूँगा।'

'लेकिन जानते हो, वह प्यारी लड़की, जो हमें रोटियाँ खिलाती है, उसी की लड़की है, जो इस घर का मालिक है। यह बेचारी अनाथ न हो जाएगी?'

'तो मालकिन को न फेंक दूँ। वही तो उस लड़की को मारती है।'

'लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूले जाते हो।'

'तुम तो किसी तरह निकलने ही नहीं देते। बताओ, तुड़ाकर भाग चलें।'

'हाँ, यह मैं स्वीकार करता हूँ, लेकिन इतनी मोटी रस्सी टूटेगी कैसे?'

'इसका एक उपाय है। पहले रस्सी को थोड़ा-सा चबा लो। फिर एक झटके में जाती है।'

रात को जब बालिका रोटियाँ खिलाकर चली गई, दोनों रस्सियाँ चबाने लगे, पर मोटी रस्सी मुँह में न आती थी। बेचारे बार-बार जोर लगाकर रह जाते थे।

सहसा घर का द्वार खुला और वही लड़की निकली। दोनों सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे। दोनों की पूँछें खड़ी हो गईं। उसने उनके माथे सहलाए और बोली-खोले देती हूँ। चुपके से भाग जाओ, नहीं तो यहाँ लोग मार डालेंगे। आज घर में सलाह हो रही है कि इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाए।

उसने गाँव खोल दिया, पर दोनों चुपचाप खड़े रहे।

मोती ने अपनी भाषा में पूछा-अब चलते क्यों नहीं?

हीरा ने कहा-चलें तो लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आएगी। सब इसी पर संदेह करेंगे। सहसा बालिका चिल्लाई-दोनों फूफावाले बैल भागे जा रहे हैं। ओ दादा! दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो। गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों भागे। गया ने पीछा किया। और भी तेज हुए। गया ने शोर मचाया। फिर गाँव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सीधे दौड़ते चले गए। यहाँ तक कि मार्ग का ज्ञान न रहा। जिस परिचित मार्ग से आए थे, उसका यहाँ पता न था। नए-नए गाँव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।

हीरा ने कहा-मालूम होता है, राह भूल गए।

'तुम भी बेतहाशा भागे। वहीं उसे मार गिराना था।'

'उसे मार गिराते, तो दुनिया क्या कहती? वह अपना धर्म छोड़ दे, लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोड़ें?'

दोनों भूख से व्याकुल हो रहे थे। खेत में मटर खड़ी थी। चरने लगे। रह-रहकर आहट ले लेते थे, कोई आता तो नहीं है।

जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया, तो मस्त होकर उछलने-कूदने लगे। पहले दोनों ने डकार ली। फिर सींग मिलाए और एक-दूसरे को ठेलने लगे। मोती ने हीरा को कई कदम पीछे हटा दिया, यहाँ तक कि वह खाई में गिर गया। तब उसे भी क्रोध आया। संभलकर उठा और फिर मोती से मिल गया। मोती ने देखा-खेल में झगड़ा हुआ चाहता है, तो किनारे हट गया।

अरे! यह क्या? कोई साँड डौंकता चला आ रहा है। हाँ, साँड ही है। वह सामने आ पहुँचा। दोनों मित्र बगलें झाँक रहे हैं। साँड पूरा हाथी है। उससे भिड़ना जान से हाथ धोना है; लेकिन न भिड़ने पर भी जान बचती नहीं नजर आती। इन्हीं की तरफ़ आ भी रहा है। कितनी भयंकर सूरत है!

मोती मूक-भाषा में कहा-बुरे फंसे। जान बचेगी? कोई उपाय सोचो।

हीरा ने चिंतित स्वर में कहा-अपने घमंड में भूला हुआ है। आरजू-विनती न सुनेगा।

'भाग क्यों न चलें?' 'भागना कायरता है।'

'तो फिर यहीं मरो। बंदा तो नौ दो ग्यारह होता है।'

'और जो दौड़ाए?'

'तो फिर कोई उपाय सोचो जल्द !'

'उपाय यही है कि उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें? मैं आगे से रगेदता हूँ, तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी, तो भाग खड़ा होगा। मेरी ओर झपटे, तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड़ देना। जान जोखिम है; पर दूसरा उपाय नहीं है।'

दोनों मित्र जान हथेलियों पर लेकर लपके। साँड को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजरबा न था। वह तो एक शत्रु से मल्लयुद्ध करने का आदी था। ज्यों ही हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौड़ाया। साँड उसकी तरफ़ मुड़ा, तो हीरा ने रगेदा। साँड चाहता था कि एक-एक करके दोनों को गिरा ले; पर ये दोनों भी उस्ताद थे। उसे वह अवसर न देते थे। एक बार साँड झल्लाकर हीरा का अंत कर देने के लिए चला कि मोती ने बगल से आकर पेट में सींग भोंक दिया। साँड क्रोध में आकर पीछे फिरा तो हीरा ने दूसरे पहलू में सींग चुभा दिया। आखिर बेचारा ज़ख्मी होकर भागा और दोनों मित्रों ने दूर तक उसका पीछा किया। यहाँ तक कि साँड बेदम होकर गिर पड़ा। तब दोनों ने उसे छोड़ दिया।

दोनों मित्र विजय के नशे में झूमते चले जाते थे।

मोती ने अपनी सांकेतिक भाषा में कहा-मेरा जी तो चाहता था कि बच्चा को मार ही डालूँ।

हीरा ने तिरस्कार किया-गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिए।

'यह सब ढोंग है। बैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठे।'

'अब घर कैसे पहुँचेंगे, वह सोचो।'

'पहले कुछ खा लें, तो सोचें।'

सामने मटर का खेत था ही। मोती उसमें घुस गया। हीरा मना करता रहा, पर उसने एक न सुनी। अभी दो ही चार ग्रास खाए थे कि दो आदमी लाठियाँ लिए दौड़ पड़े और दोनों मित्रों को घेर लिया। हीरा तो मेड़ पर था, निकल गया। मोती सींचे हुए खेत में था। उसके खुर कीचड़ में धँसने लगे। न भाग सका। पकड़ लिया। हीरा ने देखा, संगी संकट में हैं, तो लौट पड़ा। फँसेंगे तो दोनों फँसेंगे। रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया।

प्रातःकाल दोनों मित्र कांजीहौस में बंद कर दिए गए।

दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला। समझ ही में न आता था, यह कैसा स्वामी है। इससे तो गया फिर भी अच्छा था। यहाँ कई भैंसें थीं, कई बकरियाँ, कई घोड़े, कई गधे; पर किसी के सामने चारा न था, सब ज़मीन पर मुरदों की तरह पड़े थे। कई तो इतने कमज़ोर हो गए थे कि खड़े भी न हो सकते थे। सारा दिन दोनों मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए ताकते रहे; पर कोई चारा लेकर आता न दिखाई दिया। तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती ?

रात को भी जब कुछ भोजन न मिला, तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी। मोती से बोला अब तो नहीं रहा जाता मोती!

मोती ने सिर लटकाए हुए जवाब दिया- मुझे तो मालूम होता है, प्राण निकल रहे हैं।

'इतनी जल्द हिम्मत न हारो भाई! यहाँ से भागने का कोई उपाय निकालना चाहिए।'

'आओ दीवार तोड़ डालें।'

'मुझसे तो अब कुछ नहीं होगा।'

'बस इसी बूते पर अकड़ते थे!'

'सारी अकड़ निकल गई।'

बाड़े की दीवार कच्ची थी। हीरा मजबूत तो था ही, अपने नुकीले सींग दीवार में गड़ा दिए और ज़ोर मारा, तो मिट्टी का एक चिप्पड़ निकल आया। फिर तो उसका साहस बढ़ा। इसने दौड़-दौड़कर दीवार पर चोटें कीं और हर चोट में थोड़ी-थोड़ी मिट्टी गिराने लगा।

उसी समय कांजीहौस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की हाज़िरी लेने आ निकला। हीरा का उजड्डुपन देखकर उसने उसे कई डंडे रसीद किए और मोटी-सी रस्सी से बाँध दिया।

मोती ने पड़े-पड़े कहा-आखिर मार खाई, क्या मिला?

'अपने बूते-भर ज़ोर तो मार दिया।'

'ऐसा ज़ोर मारना किस काम का कि और बंधन में पड़ गए।'

'ज़ोर तो मारता ही जाऊँगा, चाहे कितने ही बंधन पड़ते जाएँ।'

'जान से हाथ धोना पड़ेगा।'

'कुछ परवाह नहीं। यों भी तो मरना ही है। सोचो, दीवार खुद जाती, तो कितनी जानें बच जातीं। इतने भाई यहाँ बंद हैं। किसी की देह में जान नहीं है। दो-चार दिन और यही हाल रहा, तो सब मर जाएँगे।'

'हाँ, यह बात तो है। अच्छा, तो ला, फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।'

मोती ने भी दीवार में उसी जगह सींग मारा। थोड़ी-सी मिट्टी गिरी और फिर हिम्मत बढ़ी। फिर तो वह दीवार में सींग लगाकर इस तरह ज़ोर करने लगा, मानो किसी प्रतिद्वंद्वी से लड़ रहा है। आखिर कोई दो घंटे की जोर-आजमाई के बाद दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ गिर गई। उसने दूनी शक्ति से दूसरा धक्का मारा, तो आधी दीवार गिर पड़ी।

दीवार का गिरना था कि अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे। तीनों घोड़ियाँ सरपट भाग निकलीं। फिर बकरियाँ निकलीं। इसके बाद भैंसें भी खिसक गईं; पर गधे अभी तक ज्यों-के-त्यों खड़े थे।

हीरा ने पूछा-तुम दोनों क्यों नहीं भाग जाते?

एक गधे ने कहा-जो कहीं फिर पकड़ लिए जाएँ!

'तो क्या हरज है। अभी तो भागने का अवसर है।'

'हमें तो डर लगता है, हम यहीं पड़े रहेंगे।' आधी रात से ऊपर जा चुकी थी। दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागें या न भागें, और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था। जब वह हार गया, तो हीरा ने कहा-तुम जाओ, मुझे यहीं पड़ा रहने दो। शायद कहीं भेंट हो जाए।

मोती ने आँखों में आँसू लाकर कहा- तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो, हीरा ? हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं। आज तुम विपत्ति में पड़ गए, तो मैं तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊँ।

हीरा ने कहा-बहुत मार पड़ेगी। लोग समझ जाएँगे, यह तुम्हारी शरारत है।

मोती गर्व से बोला-जिस अपराध के लिए तुम्हारे गले में बंधन पड़ा, उसके लिए अगर मुझ पर मार पड़े, तो क्या चिंता ! इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे।

यह कहते हुए मोती ने दोनों गधों को सींगों से मार-मारकर बाड़े के बाहर निकाला और तब अपने बंधु के पास आकर सो रहा।

भोर होते ही मुंशी और चौकीदार तथा अन्य कर्मचारियों में कैसी खलबली मची, इसके लिखने की ज़रूरत नहीं। बस, इतना ही काफ़ी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बाँध दिया गया।

दो बैलों की कथा - भाग 5

एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहाँ बँधे पड़े रहे। किसी ने चारे का एक तृण भी न डाला। हाँ, एक बार पानी दिखा दिया जाता था। यही उनका आधार था। दोनों इतने दुर्बल हो गए थे कि उठा तक न जाता था, ठठरियाँ निकल आई थीं।

एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहाँ पचास-साठ आदमी जमा हो गए। तब दोनों मित्र निकाले गए और उनकी देखभाल होने लगी। लोग आ-आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते। ऐसे मृतक बैलों का कौन खरीदार होता? सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर, आया और दोनों मित्रों के कूल्हों में उँगली गोदकर मुंशी जी से बातें करने लगा। उसका चेहरा देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे। वह कौन है और उन्हें क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई संदेह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया।

हीरा ने कहा-गया के घर से नाहक भागे। अब जान न बचेगी।

मोती ने अश्रद्धा के भाव से उत्तर दिया- कहते हैं, भगवान सबके ऊपर दया करते हैं। उन्हें हमारे ऊपर क्यों दया नहीं आती?

'भगवान के लिए हमारा मरना-जीना दोनों बराबर है। चलो, अच्छा ही है, कुछ दिन उसके पास तो रहेंगे। एक बार भगवान ने उस लड़की के रूप में हमें बचाया था। क्या अब न बचाएँगे?'

'यह आदमी छुरी चलाएगा। देख लेना।'

'तो क्या चिंता है? माँस, खाल, सींग, हड्डी सब किसी-न-किसी काम आ जाएँगे।'

नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले। दोनों की बोटी-बोटी काँप रही थी। बेचारे पाँव तक न उठा सकते थे, पर भय के मारे गिरते-पड़ते भागे जाते थे; क्योंकि वह जरा भी चाल धीमी हो जाने पर जोर से डंडा जमा देता था।

राह में गाय-बैलों का एक रेवड़ हरे-हरे हार में चरता नज़र आया। सभी जानवर प्रसन्न थे, चिकने, चपल। कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठा पागुर करता था। कितना सुखी जीवन था इनका; पर कितने स्वार्थी हैं सब। किसी को चिंता नहीं कि उनके दो भाई वधिक के हाथ पड़े कैसे दुखी हैं।

सहसा दोनों को ऐसा मालूम हुआ कि यह परिचित राह है। हाँ, इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था। वही खेत, वही बाग, वही गाँव मिलने लगे। प्रतिक्षण उनकी चाल तेज होने लगी। सारी थकान, सारी दुर्बलता गायब हो गई। आह! यह लो! अपना ही हार आ गया। इसी कएँ पर हम पुर चलाने आया करते थे, यही कुआँ है। मोती ने कहा-हमारा घर नगीच आ गया।

हीरा बोला-भगवान की दया है।

'मैं तो अब घर भागता हूँ।'

'यह जाने देगा?'

'इसे मैं मार गिराता हूँ।'

'नहीं-नहीं, दौड़कर थान पर चलो। वहाँ से हम आगे न जाएँगे।'

दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की भाँति कुलेलें करते हुए घर की ओर दौड़े। वह हमारा थान है। दोनों दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए। दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था।

झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा। मित्रों की आँखों से आनंद के आँसू बहने लगे। एक झूरी का हाथ चाट रहा था।

दढ़ियल ने जाकर बैलों की रस्सियाँ पकड़ लीं।

झूरी ने कहा-मेरे बैल हैं।

'तुम्हारे बैल कैसे? मैं मवेशीखाने से नीलाम लिए आता हूँ।'

'मैं तो समझा हूँ, चुराए लिए आते हो! चुपके से चले जाओ। मेरे बैल हैं। मैं बेखूँगा तो बिकेंगे। किसी को मेरे बैल नीलाम करने का क्या अख्तियार है?'

'जाकर थाने में रपट कर दूँगा।'

'मेरे बैल हैं। इसका सबूत यह है कि मेरे द्वार पर खड़े हैं।'

दढ़ियल झल्लाकर बैलों को ज़बरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बढ़ा। उसी वक्त मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल पीछे हटा। मोती ने पीछा किया। दढ़ियल भागा। मोती पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर निकल जाने पर वह रुका; पर खड़ा दढ़ियल का रास्ता देख रहा था, दढ़ियल दूर खड़ा धमकियाँ दे रहा था, गालियाँ निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था। और मोती विजयी शूर की भाँति उसका रास्ता रोके खड़ा था। गाँव के लोग यह तमाशा देखते थे और हँसते थे। जब दढ़ियल हारकर चला गया, तो मोती अकड़ता हुआ लौटा।

हीरा ने कहा-मैं डर रहा था कि कहीं तुम गुस्से में आकर मार न बैठो।

'अगर वह मुझे पकड़ता, तो मैं बे-मारे न छोड़ता।'

'अब न आएगा।'

'आएगा तो दूर ही से खबर लूँगा। देखूँ, कैसे ले जाता है।'

'जो गोली मरवा दे?'

'मर जाऊँगा, पर उसके काम तो न आऊँगा।'

'हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता।'

'इसीलिए कि हम इतने सीधे हैं।'

जरा देर में नाँदों में खली, भूसा, चोकर और दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खाने लगे। झूरी खड़ा दोनों को सहला रहा था और बीसों लड़के तमाशा देख रहे थे।

सारे गाँव में उछाह-सा मालूम होता था।

उसी समय मालकिन ने आकर दोनों के माथे चूम लिए।

​दो बैलों की कथा : सारांश

​यह कहानी झूरी नामक किसान के दो बैलों, हीरा और मोती, की गहरी दोस्ती और भावनात्मक बंधन को दर्शाती है। वे दोनों एक-दूसरे को मूक-भाषा में समझते हैं और मिलकर काम करते हैं। कहानी की शुरुआत में झूरी अपने साले गया को दोनों बैल देता है, जो उन्हें कठोरता से रखता है। बैल इसे अपमान मानते हैं और रस्सी तोड़कर अपने मालिक झूरी के पास लौट आते हैं, जहाँ उनका भव्य स्वागत होता है।
​झूरी की पत्नी बैलों के भाग आने पर नाराज होती है और उन्हें दोबारा गया के पास भेज देती है। इस बार गया उन्हें और भी बुरी तरह से रखता है। एक दिन दोनों बैल फिर से वहाँ से भागने में सफल हो जाते हैं। रास्ते में, वे एक उद्दंड साँड़ से मुकाबला करते हैं और उसे हराते हैं, फिर मटर के खेत में चरते समय पकड़े जाते हैं और उन्हें कांजीहौस में बंद कर दिया जाता है।
​कांजीहौस में कैद में रहते हुए भी वे हिम्मत नहीं हारते। हीरा दीवार तोड़कर कई जानवरों को भागने में मदद करता है। मोती अपनी दोस्ती निभाता है और मुसीबत में पड़े हीरा को छोड़कर नहीं जाता। अंततः, वे दोनों वहाँ से भाग निकलते हैं और अपने मालिक झूरी के घर पहुँच जाते हैं, जहाँ उनका जोरदार स्वागत होता है। कहानी में प्रेमचंद ने स्वतंत्रता, जानवरों के प्रति मानवीय व्यवहार, और सच्ची दोस्ती के मूल्यों को दर्शाया है।

प्रतियोगिता परीक्षाओं की दृष्टि से प्रश्न

प्रश्न 1. 'दो बैलों की कथा' कहानी के लेखक कौन हैं?
(अ) महादेवी वर्मा
(ब) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(स) प्रेमचंद
(द) हजारी प्रसाद द्विवेदी
उत्तर— (स) प्रेमचंद

प्रश्न 2. हीरा और मोती किस जाति के बैल थे?
(अ) पछाईं
(ब) पूरबी
(स) पंजाबी
(द) दक्खिनी
उत्तर— (अ) पछाईं

प्रश्न 3. कहानी में 'बछिया के ताऊ' किसे कहा गया है?
(अ) गधा
(ब) बैल
(स) घोड़ा
(द) कुत्ता
उत्तर— (ब) बैल

प्रश्न 4. बैलों को अपने घर वापस लाने के लिए झूरी का साला गया किस साधन का प्रयोग करता है?
(अ) गाड़ी में जोतकर
(ब) हल में जोतकर
(स) अपने साथ पैदल
(द) उन्हें पकड़कर
उत्तर— (अ) गाड़ी में जोतकर

प्रश्न 5. छोटी बच्ची बैलों को रोज़ क्या खिलाती थी?
(अ) गुड़ और चोकर
(ब) दो रोटियाँ
(स) खली और भूसा
(द) हरी घास
उत्तर— (ब) दो रोटियाँ

प्रश्न 6. कांजीहौस में कैद जानवरों की स्थिति कैसी थी?
(अ) वे सभी भूखे और बीमार थे।
(ब) उन्हें भरपेट खाना मिलता था।
(स) सभी स्वस्थ और प्रसन्न थे।
(द) उन्हें सिर्फ पानी ही दिया जाता था।
उत्तर— (अ) वे सभी भूखे और बीमार थे।

प्रश्न 7. 'आहत-सम्मान' का क्या अर्थ है?
(अ) सम्मान का अधिकार
(ब) सम्मान का उल्लंघन
(स) सम्मान से पीड़ित
(द) चोट पहुँचा हुआ आत्म-सम्मान
उत्तर— (द) चोट पहुँचा हुआ आत्म-सम्मान

प्रश्न 8. हीरा और मोती को गाँव के लोग क्या कहकर उनका स्वागत करते हैं?
(अ) पशु-वीर
(ब) देशभक्त
(स) मालिक के वफादार
(द) क्रांतिकारी
उत्तर— (अ) पशु-वीर

प्रश्न 9. 'दाँतों पसीना आना' मुहावरे का सही अर्थ क्या है?
(अ) बहुत गुस्सा होना
(ब) अत्यधिक परिश्रम करना
(स) दाँतों में दर्द होना
(द) डर जाना
उत्तर— (ब) अत्यधिक परिश्रम करना

प्रश्न 10. हीरा और मोती ने जब साँड को हराया, तो मोती क्या करना चाहता था?
(अ) उसे मार ही डालना
(ब) उसे घायल करके छोड़ देना
(स) उससे दोस्ती करना
(द) उसका पीछा करना छोड़ देना
उत्तर— (अ) उसे मार ही डालना

प्रश्न 11. इस कहानी में बैलों को किसका प्रतीक माना गया है?
(अ) भारतीय किसानों का
(ब) भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का
(स) भारतवासियों का
(द) ये सभी
उत्तर— (स) भारतवासियों का

प्रश्न 12. प्रेमचंद ने गधे की किस विशेषता को 'ऋषियों-मुनियों' के समान बताया है?
(अ) परिश्रम करने का गुण
(ब) संतोष और सीधापन
(स) क्रोध न करना
(द) कम खाना
उत्तर— (ब) संतोष और सीधापन

प्रश्न 13. 'गधा सचमुच बेवकूफ़ है।' इस वाक्य में 'बेवकूफ़' शब्द क्या है?
(अ) क्रिया विशेषण
(ब) विशेषण
(स) संज्ञा
(द) सर्वनाम
उत्तर— (ब) विशेषण

प्रश्न 14. 'दोनों की गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा है।' यह वाक्य रचना की दृष्टि से कैसा वाक्य है?
(अ) सरल वाक्य
(ब) मिश्र वाक्य
(स) संयुक्त वाक्य
(द) नकारात्मक वाक्य
उत्तर— (अ) सरल वाक्य

प्रश्न 15. 'लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है 'बैल'।' इस वाक्य में 'जो' शब्द किस प्रकार का सर्वनाम है?
(अ) पुरुषवाचक सर्वनाम
(ब) निश्चयवाचक सर्वनाम
(स) संबंधवाचक सर्वनाम
(द) प्रश्नवाचक सर्वनाम
उत्तर— (स) संबंधवाचक सर्वनाम

प्रश्न 16. 'झूरी ने एक बार गोई को ससुराल भेज दिया।' इस वाक्य का कर्मवाच्य रूप क्या होगा?
(अ) झूरी के द्वारा एक बार गोई को ससुराल भेजा गया।
(ब) झूरी ने एक बार गोई को ससुराल भेजा।
(स) झूरी द्वारा गोई ससुराल भेजी गई।
(द) झूरी एक बार गोई को ससुराल भेज दिया गया।
उत्तर— (अ) झूरी के द्वारा एक बार गोई को ससुराल भेजा गया।

प्रश्न 17. 'जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया।' इस वाक्य को सरल वाक्य में बदलिए।
(अ) पेट भरने के बाद दोनों ने आजादी का अनुभव किया।
(ब) जब पेट भर गया और दोनों ने आजादी का अनुभव किया।
(स) पेट भरने के कारण दोनों ने आजादी का अनुभव किया।
(द) दोनों ने पेट भर कर आजादी का अनुभव किया।
उत्तर— (अ) पेट भरने के बाद दोनों ने आजादी का अनुभव किया।

प्रश्न 18. कहानी के आरंभ में प्रेमचंद ने गधे के किस गुण की चर्चा की है?
(अ) उसकी चतुराई
(ब) उसकी आलस्य
(स) उसकी सरलता और सहनशीलता
(द) उसका क्रोध उत्तर— (स) उसकी सरलता और सहनशीलता

प्रश्न 19. कांजीहौस से भागने के बाद बैलों को कैसे पता चला कि वे अपने गाँव के पास पहुँच गए हैं?
(अ) उन्होंने गाँव के लोगों की आवाज सुनी
(ब) उन्हें अपने मालिक की खुशबू आई
(स) उन्होंने परिचित राह, खेत और कुएँ देखे
(द) एक पक्षी ने उन्हें रास्ता बताया उत्तर— (स) उन्होंने परिचित राह, खेत और कुएँ देखे

प्रश्न 20. बैलों के पहली बार झूरी के घर वापस आने पर गाँव के लोगों ने क्या किया?
(अ) उन्हें मारा-पीटा
(ब) उनका अभिनंदन किया और उन्हें खाने को दिया
(स) उन्हें दुबारा गया के पास भेज दिया
(द) उनकी उपेक्षा की उत्तर— (ब) उनका अभिनंदन किया और उन्हें खाने को दिया

प्रश्न-अभ्यास

​​

प्रश्न 1. कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी?
उत्तर — कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी इसलिए ली जाती होगी ताकि पशुओं की संख्या का पता चल सके। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए भी हाजिरी ली जाती होगी कि कोई जानवर भाग तो नहीं गया या मर तो नहीं गया। यह व्यवस्था एक तरह से सरकारी नियम का हिस्सा थी।

प्रश्न 2. छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया?
उत्तर — छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम इसलिए उमड़ आया क्योंकि वह स्वयं भी अपनी सौतेली माँ के व्यवहार से दुखी थी। जिस तरह बैलों को गया मारता-पीटता था, उसी तरह उसकी सौतेली माँ भी उसे मारती थी। इस तरह दोनों ने एक-दूसरे में अपना दुख देखा और उनके बीच एक भावनात्मक रिश्ता बन गया।

प्रश्न 3. कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभर कर आए हैं?
उत्तर — कहानी में बैलों के माध्यम से कई नीति-विषयक मूल्य सामने आते हैं:
सच्ची दोस्ती : हीरा और मोती की दोस्ती यह सिखाती है कि सच्चे दोस्त एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ते, चाहे कितनी भी मुसीबत आए।
स्वतंत्रता का महत्व : बैलों का बार-बार भागना यह दर्शाता है कि हर प्राणी को स्वतंत्रता प्रिय होती है और गुलामी स्वीकार नहीं होती।
एकता में शक्ति : जब हीरा और मोती मिलकर साँड का मुकाबला करते हैं, तो यह साबित होता है कि अकेले से बेहतर है मिलकर काम करना।
परोपकार : हीरा और मोती दूसरों (कांजीहौस के जानवरों) की मदद करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं।

प्रश्न 4. प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने गधे की किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ 'मूर्ख' का प्रयोग न कर किस नए अर्थ की ओर संकेत किया है?
उत्तर — प्रेमचंद ने गधे के सीधेपन, सहनशीलता और सीधे स्वभाव के कारण उसे 'मूर्ख' न कहकर ऋषि-मुनियों के समान बताया है। उन्होंने यह संकेत दिया है कि गधे का सीधापन उसकी मूर्खता नहीं, बल्कि उसका सद्गुण है। इस कहानी में उन्होंने यह भी दर्शाया है कि इस संसार में सीधेपन का अक्सर लोग गलत फायदा उठाते हैं।

प्रश्न 5. किन घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी?
उत्तर — निम्नलिखित घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी:
मूक-भाषा में संवाद : दोनों एक-दूसरे के मन की बात बिना कहे ही समझ जाते थे।
आपसी स्नेह : वे एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते थे।
कठिन समय में साथ : गया के घर से भागते समय और कांजीहौस में कैद के दौरान भी वे एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ते थे।
आपसी त्याग : जब हल जोतते समय ज्यादा बोझ उठाने की बात आती थी, तो दोनों एक-दूसरे की मदद करते थे।

प्रश्न 6. 'लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।' हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर — हीरा के इस कथन से प्रेमचंद का स्त्री के प्रति सम्मान का दृष्टिकोण स्पष्ट होता है। यह वाक्य दर्शाता है कि प्रेमचंद स्त्री को कमजोर या हिंसा का पात्र नहीं मानते थे। वे नारी जाति को सम्मान की दृष्टि से देखते थे और मानते थे कि किसी भी स्थिति में उन पर हाथ उठाना या हिंसा करना उचित नहीं है। यह उनकी कहानियों में स्त्री पात्रों के प्रति उनके मानवीय और संवेदनशील नजरिए को भी दर्शाता है।

प्रश्न 7. किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है?
उत्तर — किसान जीवन में पशुओं और मनुष्यों के बीच का संबंध केवल काम-काज का नहीं होता, बल्कि एक गहरा भावनात्मक रिश्ता भी होता है। यह कहानी इस बात को खूबसूरती से दर्शाती है। झूरी अपने बैलों को परिवार के सदस्य की तरह मानता था। वह उन्हें मारता नहीं था और उनकी देखभाल करता था। जब बैल भागकर वापस आए, तो उसने उन्हें गले लगा लिया। गाँव के बच्चे भी उनसे स्नेह रखते थे। यह रिश्ता आपसी विश्वास, स्नेह और सम्मान पर आधारित है। बैल अपने मालिक के लिए जी-जान से काम करते थे और बदले में उनसे प्यार और सम्मान चाहते थे।

प्रश्न 8. 'इतना तो हो ही गया कि नौ दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगें'- मोती के इस कथन के आलोक में उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर — मोती के कथन 'इतना तो हो ही गया कि नौ दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगें' से उसकी कई विशेषताएँ पता चलती हैं—
परोपकारी स्वभाव : मोती ने केवल अपनी मुक्ति के बारे में नहीं सोचा, बल्कि कांजीहौस में बंद अन्य कमजोर और भूखे जानवरों को भी आजाद कराने का प्रयास किया।
साहसी और विद्रोही : वह अन्याय के खिलाफ खड़ा होने से डरता नहीं था। उसने दीवार तोड़कर भागने की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया, भले ही इससे उसे और भी मार खानी पड़ी।
सहानुभूति : उसे दूसरे जानवरों की पीड़ा देखकर बहुत दुख हुआ, इसलिए उसने उनकी जान बचाने का प्रयास किया। वह जानता था कि ऐसा करने से वे सभी उसे 'आशीर्वाद' देंगे।

प्रश्न 9. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है।
(ख) उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया।
उत्तर —
(क) अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है।
इस वाक्य का आशय यह है कि हीरा और मोती एक-दूसरे के मन की बात बिना कहे ही समझ जाते थे, जो कि मनुष्य के लिए संभव नहीं है। भले ही मनुष्य खुद को सभी प्राणियों में सबसे श्रेष्ठ मानता हो, पर वह जानवरों के इस मूक और सहज संवाद से वंचित है। यह दर्शाता है कि आपसी समझ और प्रेम के लिए भाषा की नहीं, बल्कि गहरे भावनात्मक लगाव की जरूरत होती है।

(ख) उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया।
इस कथन का अर्थ है कि छोटी बच्ची द्वारा दी गई रोटी से बैलों की शारीरिक भूख तो शांत नहीं हुई, लेकिन वह रोटी प्रेम और सहानुभूति का प्रतीक थी। गया के यहाँ उन्हें केवल सूखा भूसा मिला था, लेकिन बच्ची का स्नेह देखकर उन्हें लगा कि दुनिया में अभी भी कोई ऐसा है जो उनकी परवाह करता है। इस प्रेम ने उनकी आत्मा को सुकून और भावनात्मक संतुष्टि दी।

प्रश्न 10. गया ने हीरा-मोती को दोनों बार सूखा भूसा खाने के लिए दिया क्योंकि-
(अ) गया पराये बैलों पर अधिक खर्च नहीं करना चाहता था।
(ब) गरीबी के कारण खली आदि खरीदना उसके बस की बात न थी।
(स) वह हीरा-मोती के व्यवहार से बहुत दुखी था।
(द) उसे खली आदि सामग्री की जानकारी न थी।
उत्तर — (स) वह हीरा-मोती के व्यवहार से बहुत दुखी था।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 11. हीरा और मोती ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाई लेकिन उसके लिए प्रताड़ना भी सही। हीरा-मोती की इस प्रतिक्रिया पर तर्क सहित अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर — हीरा और मोती की प्रतिक्रिया बिल्कुल सही और न्यायसंगत थी। शोषण के खिलाफ आवाज उठाना हर प्राणी का अधिकार है। जब गया ने उन्हें जबरदस्ती अपने पास रखा और उन्हें भरपेट भोजन नहीं दिया, तो यह उनके आत्म-सम्मान के खिलाफ था। वे जानते थे कि उन्हें अपने मालिक झूरी ने नहीं बेचा है, बल्कि वे एक अमानवीय व्यवस्था में फंस गए हैं।
उनकी यह प्रतिक्रिया बताती है कि किसी भी प्रकार की गुलामी या अत्याचार को चुपचाप सहन नहीं करना चाहिए। हालाँकि उन्हें इस विद्रोह के लिए मार पड़ी और भूखा भी रहना पड़ा, लेकिन उनका यह कदम सही था। अंत में, इसी विद्रोह के कारण वे स्वतंत्र हो पाए। यह घटना हमें सिखाती है कि शोषण का विरोध करने के लिए साहस और दृढ़ता की आवश्यकता होती है, भले ही इसके लिए कुछ कष्ट उठाना पड़े।

प्रश्न 12. क्या आपको लगता है कि यह कहानी आज़ादी की लड़ाई की ओर भी संकेत करती है?
उत्तर — हाँ, मुझे लगता है कि यह कहानी सीधे तौर पर आजादी की लड़ाई की ओर संकेत करती है। प्रेमचंद का यह कालखंड भारत की आजादी की लड़ाई का था। कहानी में बैलों को परतंत्रता (गुलामी) में रखा जाता है, जैसे ब्रिटिश शासन के दौरान भारतवासी थे। गया (शोषक) को ब्रिटिश शासन का प्रतीक माना जा सकता है, जो भारतीयों का शोषण करता था। वहीं, झूरी (मालिक) को भारतीय समाज या देश का प्रतीक माना जा सकता है।
हीरा-मोती का बार-बार गया के पास से भागना भारतवासियों के स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक है, जहाँ लोग गुलामी से मुक्ति पाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे थे। बैलों का एकजुट होकर साँड का मुकाबला करना भारतीय क्रांतिकारियों की एकता को दर्शाता है। यह कहानी प्रतीकात्मक रूप से यह संदेश देती है कि स्वतंत्रता हर प्राणी का जन्मसिद्ध अधिकार है और उसे पाने के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 13. 'ही', 'भी' वाक्य में किसी बात पर जोर देने का काम कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को निपात कहते हैं। कहानी में से पाँच ऐसे वाक्य छाँटिए जिनमें निपात का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर — 'दो बैलों की कथा' में प्रयुक्त निपात वाले पाँच वाक्य इस प्रकार हैं —
​गधे को कभी क्रोध करते नहीं देखा।
​दो ही चार ग्रास खाए थे कि दो आदमी लाठियाँ लिए दौड़ पड़े।
​एक ने भी उसमें मुँह न डाला।
​बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था।
​वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते।

प्रश्न 14. रचना के आधार पर वाक्य भेद बताइए तथा उपवाक्य छाँटकर उसके भी भेद लिखिए-
(क) दीवार का गिरना था कि अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।
(ख) सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखे लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर, आया।
(ग) हीरा ने कहा-गया के घर से नाहक भागे।
(घ) मैं बेचूँगा, तो बिकेंगे।
(ङ) अगर वह मुझे पकड़ता तो मैं बे-मारे न छोड़ता
उत्तर —
(क) वाक्य भेद : मिश्र वाक्य
उपवाक्य : 'कि अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।'
भेद : संज्ञा उपवाक्य
(ख) वाक्य भेद : मिश्र वाक्य
उपवाक्य : 'जिसकी आँखे लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर'
भेद : विशेषण उपवाक्य
(ग) वाक्य भेद : मिश्र वाक्य
उपवाक्य : 'गया के घर से नाहक भागे।' भेद: संज्ञा उपवाक्य
(घ) वाक्य भेद : मिश्र वाक्य
उपवाक्य : 'तो बिकेंगे।'
भेद : क्रिया-विशेषण उपवाक्य
(ङ) वाक्य भेद : मिश्र वाक्य
उपवाक्य : 'तो मैं बे-मारे न छोड़ता।'
भेद: क्रिया-विशेषण उपवाक्य

प्रश्न 15. कहानी में जगह-जगह मुहावरों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर — कहानी से छाँटे गए पाँच मुहावरे और उनका वाक्यों में प्रयोग—
​दाँतों पसीना आना (बहुत कठिन परिश्रम करना)
वाक्य — गाड़ी को खींचने में मज़दूरों को दाँतों पसीना आ गया।
​आहट लेना (सावधान रहना)
वाक्य — चोरों की आहट मिलते ही सिपाही ने मोर्चा संभाल लिया।
​नौ दो ग्यारह होना (भाग जाना)
वाक्य — पुलिस को देखकर चोर 9-2-11 हो गया।
​जान से हाथ धोना (जान गँवा देना)
वाक्य — जंगल में शेर से भिड़ना जान से हाथ धोना है।
​रगड़कर जोतना (बहुत ज्यादा काम लेना)
वाक्य — सेठ ने अपने नौकरों से रगड़कर जोता, लेकिन मजदूरी नहीं दी।

पाठ्येतर सक्रीयता

पशु-पक्षियों से संबंधित अन्य रचनाएँ ढूँढ़कर पढ़िए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर — 'दो बैलों की कथा' कहानी की तरह हिंदी साहित्य में पशु-पक्षियों पर आधारित और भी कई महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। इन रचनाओं को पढ़कर आप उनके माध्यम से मानवीय भावनाओं, सामाजिक मुद्दों और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। कक्षा में इन पर चर्चा करने से आपके विचार और भी स्पष्ट होंगे।
यहाँ कुछ प्रमुख रचनाओं के नाम दिए गए हैं जिनका आप अध्ययन कर सकते हैं:
​'नीलकंठ' (महादेवी वर्मा) : इस संस्मरण में लेखिका ने एक मोर के जीवन, उसकी सुंदरता और उसके स्वभाव का मार्मिक वर्णन किया है।
​'गिल्लू' (महादेवी वर्मा) : यह कहानी एक गिलहरी और लेखिका के बीच के प्रेम भरे रिश्ते पर आधारित है, जो मनुष्य और पशु के बीच के अटूट बंधन को दिखाती है।
​'एक कुत्ता और एक मैना' (हजारी प्रसाद द्विवेदी) : इस निबंध में लेखक ने रवींद्रनाथ टैगोर के पशु-प्रेम को दर्शाया है और उनके साथ एक कुत्ते और मैना के भावनात्मक जुड़ाव का वर्णन किया है।
​'उठो, सोने से पहले' (रामधारी सिंह 'दिनकर') : इस कविता में दिनकर जी ने पक्षियों के माध्यम से सुबह की सुंदरता और जीवन के संदेश को व्यक्त किया है।

इन रचनाओं को पढ़ने के बाद, आप अपनी कक्षा में इन बिंदुओं पर चर्चा कर सकते हैं:

​लेखक ने पशु-पक्षियों के माध्यम से कौन-कौन सी मानवीय भावनाओं को दर्शाया है?
​इन रचनाओं में पशु-पक्षियों को कैसा स्थान दिया गया है, और क्या यह आज के समाज से मेल खाता है?
​क्या पशुओं का जीवन मनुष्य के जीवन को प्रभावित करता है, और कैसे?
​इन कहानियों से हमें पशुओं के प्रति कैसा व्यवहार करने की सीख मिलती है?

कठिन शब्द और उनके अर्थ

निरापद = सुरक्षित
सहिष्णुता = सहनशीलता
पछाईं = पालतू पशुओं की एक नस्ल
गोईं = जोड़ी
कुलेल (कल्लोल) = क्रीड़ा
विषाद = उदासी
पराकाष्ठा = अंतिम सीमा
गण्य = गणनीय, सम्मानित
विग्रह = अलगाव
पगहिया = पशु बाँधने की रस्सी
गराँव = फुंदेदार रस्सी जो बैल आदि के गले में पहनाई जाती है।
प्रतिवाद = विरोध
टिटकार = मुँह से निकलने वाला टिक-टिक का शब्द
मसलहत = हितकर
रगेदना = खदेड़ना
मल्लयुद्ध = कुश्ती
साबिका = वास्ता, सरोकार
कांजीहौस = (काइन हाउस) मवेशीखाना, वह बाड़ा जिसमें दूसरे का खेत आदि खाने वाले या लावारिस चौपाये बंद किए जाते हैं और कुछ दंड लेकर छोड़े या नीलाम किए जाते हैं।
रेवड़ = पशुओं का झुंड
उन्मत्त = मतवाला
थान = पशुओं के बाँधे जाने की जगह
उछाह = उत्सव, आनंद
चौकस = सावधान
व्यथा = पीड़ा
स्नेह = प्रेम
झल्लाकर = क्रोध में आकर
कुलेलें = उछल-कूद
भीषण = भयंकर
तिस्कार = अपमान
अखितयार = अधिकार
बोटी-बोटी काँपना = बहुत डर जाना

बुद्धिहीन = मूर्ख, जिसके पास बुद्धि न हो
सद्गुणों = अच्छे गुण
दयनीय = दया के योग्य, बहुत बुरी
अनादर = अपमान, बेइज्जती
डील = शरीर, कद
मूक-भाषा = बिना बोले की भाषा, संकेतों की भाषा
विनिमय = लेन-देन, आदान-प्रदान
कनखियों से = तिरछी नजरों से
ताकीद = कड़ा निर्देश, चेतावनी
आहत-सम्मान = चोट पहुँचा हुआ आत्म-सम्मान
व्यथा = दुख, पीड़ा
जुँआ = हल या गाड़ी में बैलों के कंधे पर रखा जाने वाला डंडा
तेवर = भाव, रुख, मिजाज
ठठरियाँ = ठठरी का बहुवचन, अत्यधिक दुर्बल होने पर हड्डियों का ढाँचा
पागुर करना = जुगाली करना (पशुओं का खाना वापस मुँह में लाकर चबाना)
बोटी-बोटी काँपना = बहुत डर जाना